क्रांतिकारी विचारक रघुनाथ परसाई से भयभीत थी ब्रिटिश सरकार।

पुण्यतिथि 23 सितम्बर

Rai Singh Sendhav

(नरेंद्र तिवारी \’पत्रकार\’) । आज का मध्यप्रदेश ब्रिटिशकाल मे मध्यभारत कहलाता था। उस दौरान मध्यभारत में इंदौर आजादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र हुआ करता था, इस स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमख नायक थै, क्रांतिकारी लेखक, पत्रकार, विचारक ओर समाज सुधारक रघुनाथ जी परसाई जिनके क्रन्तिकारी लेख अंग्रेजी सरकार की चूले हिला देतें थै। सिवनी मॉलवा में जन्में परसाई जी का कर्म क्षेत्र इंदौर, उज्जैन, खंडवा, रतलाम ओर होसंगाबाद रहा। आजादी के अमृत महोत्सव में उन साहसी, वीर ओर स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को याद करना बेहद जरूरी हैं, जिनकी बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं किंतु एक समय ऐसा भी था। जब मुल्क अंग्रेजो का गुलाम था। अंग्रेजी हुकूमत के कारकुन भारतीयों पर जुल्म पर जुल्म ढहा रहे थै। उस दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साहस और निडरता के साथ कलम चलाने वालो में पत्रकार, लेखक रघुनाथ परसाई का नाम अग्रणी था। वें कम संसाधनों ओर आर्थिक तंगी के बावजूद भी पत्रकारिता के पवित्र धर्म का पालन करते हुए समाज के शोषित, वंचित, पीड़ित, गरीब ओर कृषकों की दीनहीन दशा की असली तस्वीर उजागर कर अंग्रेज सरकार के जुल्म ओर अत्याचार को बिना डर उजागर करते थै। नवयुवकों में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति चेतना जागृत करने में उनकी अग्रणी भूमिका थी। आपकी लिखी पुस्तकों में \’भारतीय युवकों को राष्ट्रीय संदेश, \’युवक ओर स्वाधीनता, \’स्वदेश ओर स्वराज्य, \’भारत मे गौ-दशा, कृषक ओर स्वाधीनता\’ प्रमुख हैं। स्वाधीनता आंदोलन के इस सिपाही ने अपनी कलम के माध्यम से सम्पूर्ण मध्यभारत में आजादी के आंदोलन के प्रति चेतना जागृत की थी। वें छोटे-छोटे पेम्पलेट भी निकालते थै। उनकी अनेकों पुस्तको ओर पेम्पलेट तात्कालिन ब्रिटिश सरकार ने जप्त कर लिए थै। आप इंदौर से प्रकाशित साप्ताहिक \’मालव बंधु\’ के संपादक भी रहें। इस पत्र के माध्यम से अंग्रेज सरकार की नीतियों की कटु आलोचनाएं जारी रखी। जबलपुर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प.कालिका प्रसाद दीक्षित \’कुसमाकर\’ ने स्व. रघुनाथ परसाई की 10 वी पुण्यतिथि के अवसर पर लिखे अपने लेख में उल्लेख किया था कि परसाई जी के इंदौर स्टेशन से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा था। वें अपने मित्रों से स्टेशन पर ही मिलते थै। सर बाफना से उनके अच्छे सबन्ध होने के कारण वें उनके निवास बख्सी बाग तक चले जाते थै। क्रन्तिकारी लेखक, विचारक, समाज सुधारक रघुनाथ परसाई के लेखन से जनसाधारण में फैल रही जागरूकता से गौरी हुकूमत परेशान थी। जिसके चलते 1 नवम्बर 1932 में मध्य भारत के गवर्नर जनरल के सचिव श्री डब्लू लेब इगरटन ने आदेश क्रमांक 510-1 दिनांक 6 अक्टूम्बर 1932 को जारी कर श्री रघुनाथ पिता कालूराम परसाई के मध्यभारत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे पूर्व 26 जून 1929 से 7 अक्टूम्बर 1930 तक आप इंदौर कारावास में बंदी बनाकर रखे गए। यह सजा आपको इंदौर के जिला दंडाधिकारी द्वारा सुनाई गई थी। प. कालिका प्रसाद ने अपने लेख में लिखा परसाई जी राजनीति के आडम्बरो ओर दिखावे के प्रबल विरोधी रहें। अपनी प्रखर ओर धारधार पत्रकारिता से उन्होंने तात्कालिन व्यवस्था में व्याप्त घूसखोरी, कालाबाजारी आदि का विरोध किया। उन्होंने कृषकों की दुर्दशा के लिए पूंजीपतियों को जिम्मेदार मानतें हुए लिखा किसानों के शोषण से ही पूंजीपतियों के विशाल भवन खड़े हैं। किसानों के रक्त से सींच कर ऐशोआराम की यह फसल लहलहा रहीं हैं। वें चाहते थे कि देश का नवयुवक अपने त्याग और तपस्या के द्वारा देश के नवनिर्माण सहायक बनें। नवयुवकों में जागृति लाने से सम्बंधित पुस्तक युवक ओर स्वाधीनता पर दिसम्बर 1937 में बॉम्बे सरकार के गृह विभाग के सचिव जे बी इरविन द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया। रतलाम जिला स्वतंत्रता सग्राम सैनिक संघ द्वारा प्रकाशित स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नामक पुस्तक में श्री रघुनाथ परसाई जी की प्रेरणा से सन 1932 में जावरा राज्य प्रजा-परिषद की स्थापना किये जाने का उल्लेख मिलता है। इसी पुस्तक में सन 1925 में श्री ज्ञानानन्द एव श्री रघुनाथ परसाई द्वारा मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ ओंकारेश्वर में तीर्थ यात्रियों पर कर लगाने का विरोध करने हेतु सत्याग्रहियों का जत्था रतलाम से ओंकारेश्वर ले जाया गया जिसमें सर्व श्री उदयलाल पांचाल, श्री जडावदचन्द पुरोहित, कन्हैयालाल रावटी वाले, श्रीलालजी, हेमराज मिस्त्री, दिनदयाल भारतीय ने भाग लिया तीर्थ यात्रियों पर लगे कर का यह आंदोलन सफल रहा तात्कालिन होल्कर स्टेट ने उक्त कर वापिस ले लिया। 6 जुलाई 1897 को अध्यापक पिता कालूराम जी परसाई के यहां सिवनी मॉलवा में जन्में रघुनाथ परसाई सक्रिय क्रन्तिकारी नायक ओर प्रेरणा पुंज थै। आजादी मिलने के बाद भी वह चैन से नहीं बैठे मध्यप्रदेश में नर्मदा किनारे स्थित होसंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील में शिक्षा और समाज सुधार का कार्य करतें रहें सोहागपुर में महाविद्यालय की स्थापना श्री रघुनाथ परसाई के सतत प्रयासों से ही मिल पाई। वें सोहागपुर नगरपालिका के उपाध्यक्ष भी रहें। 23 सितम्बर 1971 को इस महान क्रन्तिकारी, स्वतंत्रता संग्राम के नायक का सोहागपुर मध्यप्रदेश में निधन हो गया। आजादी के अमृत महोत्सव में स्व.श्री रघुनाथ परसाई (नानाजी) की स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका नवीन पीढ़ी को दशा और दिशा देगी। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.श्री रघुनाथ परसाई जी को सादर नमन। सादर नमन नानाजी।
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7,शंकरगली मोतीबाग सेंधवा जिला बड़वानी मप्र।
मोबा-9425089251

संपादक

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