मध्यप्रदेश में खिला कमल और मुरझाए कमलनाथ…

  मध्यप्रदेश में राजनैतिक घटनाक्रम कुछ इस तरह घटित हुए की रातों रात सत्ता पलटी और जो अपने थे वो पराये हो गए और जो पराये थे वो अपने हो गए। मार्च 2020 की 4 तारीख को हरियाणा के मानेसर से बसपा विधायक रामबाई व अन्य विधायको को लेकर आना और विधायकों की खरीद फरोख्त की खबरों से सरकार की अस्थिरता के संकेत मिले किन्तु ऐसा लगा की मामला कण्ट्रोल में आ गया, लेकिन एक सप्ताह के भीतर ही कांग्रेस के एक क्षत्रप ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनदेखी तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को ऐसी भारी पड़ी की वे अर्श से फर्श पर आ गिरे।

Rai Singh Sendhav

कार्यकर्ताओं का टूटता जुनून और आती हताशा…

पिछले 15 वर्षों से कांग्रेस कार्यकर्ता सत्ता में आने के लिए धरने, प्रदर्शन, आंदोलन कर रहे थे। सत्ता आई लेकिन वह कार्यकर्ताओं की नहीं सिर्फ और सिर्फ चुनिंदा मठाधीशों की। जो विपक्ष में संघर्ष करते थे वे स्वाभिमानी हाशिये पर चले गए और जिन्होंने संघर्ष के दौर में कामकाज संभाला और नेताओं के आगे मुह दिखाई की रस्म निभाई वे सत्ता के ठेकेदार बने। मंत्रियों और विधायकों के चंद सिपहसालारों तक सत्ता सिमट गई। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो निष्ठावान कार्यकर्ता इसी आशा में रहा की कुछ दिनों में सब ठीक हो जायेगा लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ की एकला चलो की नीति और दिग्विजय सिंह की अपने बेटे को स्थापित करने की चाहत ने कार्यकर्ताओं को हताश किया और ज्योतिरादित्य सिंधिया को बगावत करने को मजबूर किया। 20 मार्च 2020 को जब कमलनाथ ने इस्तीफा दिया तो कांग्रेस कार्यकर्ता भी मन ही मन सरकार के गिरने से खुश था क्योंकि सरकार में आम कार्यकर्ताओ की पूछपरख भी तो नहीं थी, ऐसा उसके मन में था। कुछ समय के गुस्से के बाद निष्ठावान कार्यकर्ता एक बार फिर उपचुनाव की तैयारी में अपनी सारी पीड़ा भूलकर जीत की तैयारी में जी तोड़ मेहनत में लग गया। परिणाम विपरीत आने पर आज कार्यकर्ता स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहा है… और चौराहे- चौपालों सत्ता गिरने का दोषी भी कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी और उनके अहम को मान रहा है। कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से इन दोनों नेताओ को फ्रंट लाइन पॉलिटिक्स से हटाकर मार्गदर्शक मण्डल में रखने की भी बातें रखी हैं।

दिग्विजय बंटाधार तो कमलनाथ सुपर फ्लॉप

मध्यप्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह मिस्टर बंटाधार के नाम से मशहूर हैं। उन्होंने अपने मुख्यमंत्री रहते ऐसा बट्टा बिठाया की 15 साल के संघर्ष के बाद पार्टी सत्ता में आई। सत्ता में आने के बाद उन्हें ऐसा लगा की अपने बेटे जयवर्धन को भावी मुख्यमंत्री बनाना है तो उसे अभी कैबिनेट मंत्री बनाना जरूरी होगा ऐसे में उन्होंने अपने रसूख का उपयोग करते हुए 2 बार जीते कई विधायकों को सीधा कैबिनेट मंत्री बनवाकर वरिष्ठ और कनिष्ठ की सीमा को भी लांघा और तीन ,चार और सात बार के विधायक मंत्री पद नहीं ले पाये, ऐसे नेताओ में बिसाहूलाल सिंह, के पी सिंह, लक्षमण सिंह, राजवर्धन सिंह आदि नेताओं को अपमान के घूंट पीना पड़े और समय आने पर बिसाहूलाल ने हरदीप ढंग को साथ लेकर पार्टी छोड़ी वही राजवर्धन सिंह सिंधिया के साथ गए और बीजेपी सरकार में आज तीनो मंत्री हैं। वहीं कमलनाथ  दिग्विजयी प्रभाव और अपने आसपास के सलाहकारों के चक्कर में आकर खुद की कुर्सी भी गवां बैठे और फ्लॉप साबित हुए। उस दौरान कमलनाथ समर्थक मंत्री भी मीडिया में बयानबाजी करते दिखे और प्रदेश अध्यक्ष के लिए कांतिलाल भूरिया की जमकर वकालत भी की, जबकि सिंधिया इस पद के मजबूत दावेदार थे। कमलनाथ और उनकी टीम सिंधिया को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी, उन्हें राज्यसभा में दूसरे नम्बर का प्रत्याशी बनाना, प्रदेश अध्यक्ष का पद खुद ने छोड़ा नहीं और किसी को बनने नहीं दिया जबकि सत्ता और संगठन चलाना सम्भव नही हुआ और आज चारों खाने चित्त हुए।

मठाधीशों को घर भेजकर नई शुरूआत की दरकार

कांग्रेस पार्टी को यदि फिर से मध्यप्रदेश में वापसी करनी है तो दोनों मठाधीशों को मार्गदर्शक मण्डल में बैठाकर नई पीढ़ी के नेताओं को अब बागडोर सौपना चाहिए। लगातार सुनने में आ रहा है कि कमलनाथ दिल्ली से आकर प्रदेश कार्यकारिणी भंग करेंगे और नई कार्यकारिणी बनेगी। अब उन्हें खुद इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि जिन पर वे कारवाही करने जा रहे हैं वे तो कम दोषी हैं सत्ता गिरने के…, जबकि प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री रहते हुए खुद कमलनाथ जिम्मेदार है हाशिये पर आने के…, लेकिन \”समरथ को नहीं दोष गुसाईँ\” कहावत चरितार्थ होती है। कांग्रेस आलाकमान को पूर्व जैसे निर्णय लेने होंगे जब अर्जुन सिंह जैसे नेता को सरकार बनाने के बावजूद अगले दिन राज्यपाल बनाकर भेज दिया जाता है। कोई भी नेता संगठन से बड़ा नहीं होता इसका भान इन अहम से भरे नेताओं को करवाना होगा।  अब अगले चुनाव से पहले कांग्रेस को प्रदेश में मिनाक्षी नटराजन, कमलेश्वर पटेल, अरुण यादव, प्रियव्रत सिंह, उमंग सिंघार, जीतू पटवारी जैसे चेहरों पर विश्वास करके संगठन को मजबूत करने का लक्ष्य देना होगा और कार्यकर्ताओं की कद्र करनी होगी। सत्ता में मलाई खाने वालों की लिस्ट बनाकर उनकी भी जवाबदेही अब तय करने का समय है, और भीतरघात करने वालों पर सख्त कार्यवाही करने का…।

संपादक

+ posts

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Enable Notifications OK No thanks